आज कल हम रिश्ते इतने जल्दी बना लेते हैं कि बाद में हमें पछताना पड़ता है सिर्फ अपनों के होने से कुछ नहीं होता बल्कि उन अपनों में अपनेपन का एहसास भी होना बहुत जरूरी है आजकल हम लोग रिश्ते इस तरीके से बनाते हैं जब तक काम हो उनका उसके बाद वह आपको छोड़ कर चले जाते हैं जीवन में अधिकतम हमने ऐसा ही देखा है शायद ऐसा मेरे साथ हुआ है ओर शायद आपके साथ भी हुआ होगा। हम लोग जिंदगी में सिर्फ एक ही गलती करते हैं और वह है भरोसा हम सस्ते लोगों पर भरोसा कर बैठते हैं जिस प्रकार हम कपड़े ब्रांडेड पहनते हैं ना उसी प्रकार रिश्ते भी ब्रांडेड ही बनाई है उनकी टिकने की गुंजाइश ज्यादा होगी।
"चाहना आसान है पर चाहते रहना कठिन है।"
और चलते चलते आज का अनमोल विचार
अपनी दो ही चीजें है, एक ईश्वर, दूसरा हमारा कर्म !!
अगर विश्वास नहीं है तो आजमा के देख लो !
आपका सवाई सिंह राजपुरोहित एस.एम सीरीज 3 से
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-4-22) को "23 अप्रैल-पुस्तक दिवस"(चर्चा अंक-4409) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी आपका सहयोग और आशीर्वाद ऐसे ही मिलता रहे...
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद इस उत्साहवर्धन के लिए आदरणीय मीना जी
हटाएंसही कहा आपने रिश्तों का यही कड़वा सच दिख रहा है आजकल समाज में...जब तक जरूरत तब तक रिश्ता..
जवाब देंहटाएंउसके बाद पहचान तक नहीं।
बहुत सुंदर।
इस उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सुधा जी
हटाएंवाह!गज़ब कहा सर 👌
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत-बहुत आभार और साधुवाद इस उत्साह वर्धन के लिए
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